पालिका अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आए न आए पर कुछ कलमकारों के प्रति जनता मे अविश्वास पैदा जरूर हुआ होगा कलमकार द्वारा दूसरे कलमकार को कलम तोड़ डालने की नसीहत देना कहां तक उचित?
संवाद यात्रा /जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत
चांपा नगरपालिका मे कथित अविश्वास प्रस्ताव लाने की चर्चा जब शुरू हुई तो इस संबंध मे कलमकारों ने अपने अपने नजरिए से इस विषय पर लोगों से चर्चा करते हुए टिप्पणी लिखना शुरू किया तब एक कलमकार को रास नहीं आया और बौद्धिक द्वंद्व पर उतरते हुए दूसरे कलमकार को कलम तोड़ने की नसीहत तक दे डाली। इससे स्पष्ट होता है कि पालिका अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा सिर्फ कोरी कल्पना थी । हम ऐसा इसलिए कह रहे है कि अभी तक एक भी पार्षदों ने पालिका मे अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात नहीं की हैं । पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए या न लाए यह उनका अपना अधिकार है । और पार्षदों की गतिविधियों के आधार पर संभावित समाचार लिखना या न लिखना यह कलमकारों का अपना अधिकार है वे अपने नजरिए से लिखने के लिए स्वतंत्र है लेकिन इस स्वतंत्रता की आड़ मे अपने समाचार और विचार को सही तथा दूसरे कलमकार के समाचार और विचार को गलत ठहराने का कुत्सित प्रयास करना कहां तक उचित है ?
हद तो तब हो जाती है कि यह कलमकार समाचार के शीर्षक को जुमला करार देते हुए अविश्वास प्रस्ताव पर अपना विचार रखते रखते नगर के लोगों को चलती फिरती जिंदा लाश भी बता देता है ।
कलमकार की यह खीज ही संदेह पैदा करता है कि नगर पालिका मे अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की कहानी मे कितनी सच्चाई है और कितना षड़यंत्र है खैर....
हम तो यही कहेंगे कि "खिंसयानी बिल्ली खंभा नोचे" वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए एक कलमकार द्वारा दूसरे कलमकार को विरोधी खेमे का कलमकार कहने से पालिकाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आए या न आए लेकिन नगर के लोगों में कुछ कलमकारों के प्रति अविश्वास पैदा जरूर हुआ होगा।








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