दुश्मनी खुब जम के करो पर इतनी गुंजाइश रहे जब कभी मिलो शर्मिंदगी न हो : नपा की लड़ाई विधानसभा तक आई

संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत.

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इन दिनों चांपा नगरपालिका मे चल रहे विवाद से राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है । स्थानीय नेता "तु डाल डाल तो मैं पात पात" कहावत को चरितार्थ करते हुए अपने अपने हिसाब से एक दूसरे के खिलाफ रणनीति बनाने मे लगे है । किसकी रणनीति से किसको कितना लाभ या हानि होता है यह तो आने वाले समय मे ही पता चलेगा। लोकतंत्र मे विरोध का अपना एक अलग महत्व होता है बशर्ते वह विरोध एक सशक्त मुद्दों पर आधारित हो । लेकिन यहां तो स्थानीय नेता अपने ही दल के नेताओं से नाराज़ होकर विरोध का बिगुल बजा रहे है । 

नगरपालिका से शुरू हुए अविश्वास एवं विश्वास की चर्चा अब विधानसभा चुनाव पर जा टिकी है । स्थानीय राजनीतक विश्लेषकों की माने तो नगर पालिका मे पालिकाध्यक्ष को हटाने की मुहिम मे असफलता मिलने के आसार के बाद अब ये नेता विधानसभा चुनाव को लक्ष्य बनाकर प्रत्याशी बदलने की मांग कर रहे हैं । उधर प्रदेश कांग्रेस आलाकमान द्वारा प्रदेश मे हारी हुई सीटों पर इस बार जीत के लिए ज्यादा ध्यान देने की बात की जा रही है तो इधर स्थानीय नेता असंतोष और नाराजगी का बिगुल बजाकर पार्टी आलाकमान के सामने संकट उत्पन्न कर रहे हैं।

नपा मे पालिकाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास की कथित चर्चा के बारे अलग अलग वर्गों की अलग अलग राय है । एक वर्ग का मानना है कि पूर्व पालिकाध्यक्ष राजेश अग्रवाल का दुबारा पालिकाध्यक्ष बनना लगभग तय था । लेकिन ऐन वक्त पर राजनीति ने करवट बदली और पार्टी ने जय थवाईत को अध्यक्ष पद के लिए नामांकित कर दिया। इधर दूबारा अध्यक्ष बनने प्रति आशान्वित राजेश अग्रवाल ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भर दिया तब तक पूरा माहौल राजेश अग्रवाल के पक्ष मे बना हुआ था।इसी बीच बहुमत न होते हुए भी पुरूषोत्तम शर्मा ने भाजपा की ओर से नामांकन भर दिया और चुनाव लड़ा। पुरूषोत्तम शर्मा के चुनाव लड़ने से पूर्व पालिकाध्यक्ष राजेश अग्रवाल का सारा समीकरण गड़बड़ा गया और जय थवाईत पालिकाध्यक्ष का चुनाव जीत गए। 

दूसरे वर्ग का मानना है कि पूर्व मे हुए पालिकाध्यक्ष चुनाव मे राजेश अग्रवाल ने पुरूषोत्तम शर्मा को मामुली अंतर से हराया था। यही कारण रहा कि पुरूषोत्तम शर्मा ने अपनी हार का बदला लेने के लिए पालिकाध्यक्ष चुनाव लड़कर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया और इस चक्रव्यूह मे फंसकर राजेश अग्रवाल को हार का सामना करना पड़ा। तब से राजेश अग्रवाल और पुरूषोत्तम शर्मा के बीच राजनीतिक शीतयुद्ध चलते आ रहा है । और यही कारण है कि बीच बीच मे नेताप्रतिपक्ष बदले जाने की चर्चा भी होने लगती है या यूं कहें कि कुछ कांग्रेसी पार्षदों द्वारा शिगुफा छोड़ी जाती है । क्योंकि भाजपा पार्षदों ने अपनी पार्टी के समक्ष अभी तक नेता प्रतिपक्ष पुरूषोत्तम शर्मा को हटाने संबंधी कोई भी मांग नहीं की है । एक वर्ग का यह भी मानना है कि प्रशासनिक अनुभव की कमी को मुद्दा बनाकर उनके ही दल के पार्षद जय थवाईत को अविश्वास के सहारे हटा सकते थे । लेकिन बीच में कुछ असंतुष्ट पार्षदों द्वारा नेता प्रतिपक्ष को भी हटाने की शर्त रखते है जिसके कारण पूरा मामला गड़बड़ा जाता है और किसी के खिलाफ कुछ भी प्रस्ताव पालिका मे नही आ पाता। 

उल्लेखनीय है कि नगर मे चल रहे इस राजनीतिक चर्चा पर न तो पूर्व पालिकाध्यक्ष राजेश अग्रवाल ने और न ही पालिकाध्यक्ष जय थवाईत ने और न ही पालिका के नेता प्रतिपक्ष पुरूषोत्तम शर्मा ने एक दूसरे के खिलाफ अभी तक खुलकर कुछ नहीं कहा है । सारी चर्चा इनके समर्थकों के माध्यम से ही सामने आ रही है। खैर.....

नगर मे खासकर नगरपालिका मे चल रहे राजनीतिक उठा पठक के बीच हम तो एक शायर के इस शेर का उदाहरण देते हुए कहेंगे कि "दुश्मनी खुब जम कर करो पर इतनी गुंजाइश रहे कि जब कभी मिलो शर्मिंदगी न हो "



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