आज तक नगरपालिका चांपा मे दूसरी बार पालिकाध्यक्ष कोई नहीं बना है . यदि राजेश अग्रवाल और प्रदीप नामदेव एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते है तो यह मिथक टूटेगा नगरपालिका की राजनीति आपसी भाईचारा पर चलती है
संवाद यात्रा /जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत
चांपा नगरपालिका चुनाव के इतिहास को देखें तो यहां कोई भी व्यक्ति दुबारा पालिकाध्यक्ष नहीं बन पाया.लेकिन इस बार यदि कांग्रेस से राजेश अग्रवाल और भाजपा से प्रदीप नामदेव अध्यक्ष का चुनाव लड़ते हैं तो यह मिथक टूटेगा.
राजेश अग्रवाल और प्रदीप नामदेव के पालिका की राजनीति को देखा जाए तो राजेश अग्रवाल दो बार पार्षद और एक बार पालिकाध्यक्ष रहें है ठीक इसी तरह प्रदीप नामदेव भी दो बार पार्षद और एक बार पालिकाध्यक्ष रहे हैं .अभी के चुनाव मे दोनो के पालिकाध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ने की प्रबल संभावना बनी हुई है. यदि दोनों आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं तो किसी एक का पालिकाध्यक्ष बनना निश्चित होगा ऐसी स्थिति मे दूसरी बार पालिकाध्यक्ष नहीं बनने का मिथक टूटना तय है . बहरहाल कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है इसलिए अभी सारी चर्चाएं संभावना पर टिकी हुई है.
चांपा नगरपालिका की राजनीति आपसी भाईचारा के आधार पर चलती है
पिछले तीस साल से नगरपालिका की राजनीति को देखा जाए तो 1994 को छोड़कर बाकी समय मे यहां कांग्रेस और भाजपा के लोगों की आपसी भाईचारा के आधार पर राजनीति चलती रही है. 1994 मे कांग्रेस की उमा देवांगन पालिकाध्यक्ष बनी थी और उसी समय कांग्रेस की पार्षद श्रीमती शांति सोनी थी . दोनों मे खुब खींचतान होती थी . खींचातानी के बीच कुछ दिनों के लिए श्रीमती शांति सोनी अध्यक्ष भी बन गई थी. 1999 मे अनुपम श्रीवास्तव के पालिकाध्यक्ष बनने के बाद पालिका मे अविश्वास प्रस्ताव जैसे कोई बात नहीं हुई.फिर भाजपा के ही श्रीमती शकुंतला सिंह और भाजपा के ही प्रदीप नामदेव पालिकाध्यक्ष बने . उसके बाद कांग्रेस के राजेश अग्रवाल और कांग्रेस के ही जय थवाईत पालिकाध्यक्ष बने .इन लोगों के तीस वर्षों के कार्यकाल को देखा जाए तो उमा देवांगन के कार्यकाल के बाद कांग्रेस और भाजपा मे ऐसी खींचातानी नहीं चली कि अविश्वास प्रस्ताव जैसे हथियार का इस्तेमाल हो .इसी के चलते यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चांपा नगरपालिका की राजनीति आपसी भाईचारा पर चलती है .







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