दिल्लगी ने दी हवा थोड़ा सा धुंआ उठा और आग जल गयी ...... पुलिस की एफ आई आर रूपी आग मे भाजपा नेता कार्तिकेश्वर स्वर्णकार झुलसे

संवाद यात्रा /जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत


"दिल्लगी ने दी हवा थोड़ा सा धुंआ उठा और आग जल गयी तेरी मेरी दोस्ती प्यार मे बदल गई "एक फिल्म मे नायिका द्वारा ठुमकते हुए अपने नायक को उक्त गीत गाते हुए आपने देखा सुना होगा । इस गीत के माध्यम से प्रेमी प्रेमिका दोनों अपने प्रेम को परवान चढ़ाने की कोशिश करते है वो तो ठीक है पर यही आग और धुआं की बात राजनीतिक घटनाक्रम में देखने को मिले खासकर मुख्यमंत्री के पुतले मे आग लगी हो तो बात कुछ और हो जाती है । 

गत अठ्ठाइस सितंबर को भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा क्षतिग्रस्त विश्वरैया द्वार का पुनः निर्माण कराए जाने की मांग लेकर नगरपालिका परिषद के सामने पंडाल लगाकर धरना दिया गया । इस धरना प्रदर्शन की जानकारी युवा मोर्चा ने बकायदा लिखित रूप से नगर पालिका एवं पुलिस थाना मे दिया था । तय कार्यक्रम के अनुसार आंदोलन चलता रहा , नेता गण भाषण देते रहे और अचानक सड़क पर धुंआ उठने लगा आंदोलन स्थल पर आग और धुआं देख वहां मौजूद पुलिस के जवान कुछ समझ पाते तब तक पुतले मे आग लग चुकी थी । पुतला मुख्यमंत्री का है यह भनक लगते ही पुलिस के जवान उसे जलने से बचाने की भरसक कोशिश करते रहे पर सफल नहीं हो पाए सुत्रों के अनुसार अधजले पुतले को अपने कब्जे मे लेने पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच छीनाझपटी का दौर चला और फिर कहासुनी हो गई। बाद मे पता चला कि इस पुतला दहन की आग ने पुलिस विभाग की एफ आई आर के रूप में भाजपा व्यवसायी प्रकोष्ठ के प्रदेश सह संयोजक कार्तिकेश्वर स्वर्णकार को झुलसा दिया। 

फिलहाल भाजयुमो के इस आंदोलन और आंदोलन की पृष्ठभूमि पर लोग चर्चा करते हुए अपने अपने हिसाब से अर्थ निकाल रहे है । और सवाल खड़े कर रहे हैं । सबसे पहले सवाल यह उठ रहा है कि आंदोलन भाजयुमो के बेनर तले था तब एफ आई आर सिर्फ़ एक नेता के खिलाफ क्यों और कैसे ? दूसरा सवाल यह कि क्षतिग्रस्त विश्वरैया द्वार के निर्माण की मांग पर नगरपालिका के बजाय मुख्यमंत्री का पुतला दहन क्यों ?

तीसरा सवाल जब वाहन दुर्घटना से विश्वरैया द्वार क्षतिग्रस्त हुआ तब उसे बनाने की सहमति देकर एक साल बाद भी नहीं बनाए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? 

चौथा सवाल इन दिनों नगरपालिका परिषद अनेक विवादों से घिरा हुआ है और बताया जाता है कि कुछ जनप्रतिनिधियों तथा नौकरशाहों का रवैया नगर के प्रति साकारात्मक दिखाई नहीं दे रहा है और ठीक इसी समय पुराने मामले को लेकर भाजयुमो का आंदोलन करने के पीछे क्या रणनीति थी ?

पांचवां सवाल यह कि जो द्वार विधायक निधि से बना है और क्षतिग्रस्त हो गया क्या उसे पुनः बनाने की जिम्मेदारी नगरपालिका की बनती है ?



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