झोला छाप डाक्टर बनाम झोला छाप पत्रकार आयुर्वेद दिवस पर विशेष
संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा धनवंतरी जयंती (धनतेरस) को आयुर्वेद दिवस के रूप मे मनाया जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति सबसे प्राचीन और प्रमाणिक चिकित्सा पद्वति है । आधुनिक चिकित्सा पद्वति के बीच आज भी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की प्रासंगिकता बनी हुई है । और यह अन्य चिकित्सा पद्धति के मुकाबले सबसे सस्ती और असरकारक भी है । आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से रोगो को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है। आज गांव गांव मे आयुर्वेद चिकित्सक हैं जो लोगों को सरल सहज रूप से स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं । लेकिन उस समय बड़ा विचित्र लगता है जब इन्हें झोलाछाप डाक्टर कहकर प्रचारित प्रसारित किया जाता है ।और बकायदा अखबारों मे इनके खिलाफ झोलाछाप डॉक्टर जैसे शब्दों का उपयोग करते हुए समाचार प्रकाशित किया जाता है।
ऐसी स्थिति को देखकर यदि यह कहा जाए कि झोलाछाप पत्रकार ही इन आयुर्वेद चिकित्सकों को झोलाछाप डॉक्टर कहते है तो शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि ये झोलाछाप पत्रकारो का एक ही उद्देश्य होता है कि कैसे इन आयुर्वेद चिकित्सकों को भयभीत करके इनसे वसुली किया जाय।
आयुर्वेद चिकित्सकों को आसानी से झोलाछाप डाक्टर तो कह दिया जाता है लेकिन कभी किसी ने आंकड़ों के साथ यह बताने कि कोशिश नहीं की है कि सस्ते मे इलाज करने वाले आयुर्वेद चिकित्सकों और मंहगे इलाज करने वाले आधुनिक डाक्टरों के हाथों कितने मरीजों की मृत्यु होती है।
कोरोना काल मे हम सबने देखा है कि बड़े बड़े आधुनिक अस्पताल मे तीस लाख चालीस लाख रुपए खर्च करने के बाद भी आदमी जिंदा बचकर नहीं आ पाता था।वहीं दूसरी ओर गांव गांव मे इन आयुर्वेद चिकित्सकों ने अपनी अचूक चिकित्सा पद्धति से हजारों लाखों लोगों को मौत के मुंह मे जाने से बचाया है । खैर...
आज धनतेरस एवं भगवान धनवंतरी की जयंती पर हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से जुड़े चिकित्सकों को आयुर्वेद दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं । और लोगों से निवेदन करते हैं कि इन आयुर्वेद चिकित्सकों को झोलाछाप डॉक्टर जैसे शब्दों से संबोधित न करें।







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