अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष आलेख। भारतीय संस्कृति में नारी की महिमा: अद्भुत अनुपम और अद्वितीय- डॉ. कुमुदिनी द्विवेदी

 

संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत


यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रम्यंते तत्र देवता।अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है। भारतीय संस्कृति में नारी को सदा से ही विशेष और पूजनीय स्थान प्राप्त है। वह केवल सृजन का स्रोत ही नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और संस्कारों की जननी भी है। उसके बिना सृष्टि अधूरी है, परिवार अधूरा है और समाज भी अधूरा है।

धरती का श्रृंगार है नारी, 

करुणा का संसार है नारी। 

मां, बहू, बेटी के रूप में,

 ईश्वर का उपहार है नारी।।

भारतीय परिवार व्यवस्था की नींव नारी ही होती है। वह संस्कारों की वाहक बनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हमारी संस्कृति और मूल्यों को संजोती आई है। जब भी समाज में रूढ़िवादिता और कुरीतियों का अंधकार घना हुआ है, तब किसी मां की कोख से जन्मी संतानों ने समाज सुधार की अलख जगाई है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का पराक्रम, सावित्रीबाई फुले का शिक्षा क्षेत्र में योगदान, इंदिरा गांधी का राजनीतिक नेतृत्व, कल्पना चावला की अंतरिक्ष में उड़ान और पी.वी. सिंधु जैसी खिलाड़ियों की उपलब्धियां इस बात का प्रमाण हैं कि नारी शक्ति का प्रभाव हर क्षेत्र में स्थापित हो चुका है।

जहां होगी शिक्षित नारी, 

वहीं होगी समृद्धि हमारी।।

एक शिक्षित नारी केवल स्वयं को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समाज को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करती है। उसके शिक्षित होने से मायका, ससुराल और संतान तीनों पक्षों का उत्थान होता है। शिक्षा ही वह माध्यम है जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाता है और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करता है।

आज हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वे विज्ञान, शिक्षा, राजनीति, खेल, व्यापार और रक्षा जैसे विविध क्षेत्रों में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। नारी सशक्तिकरण का यह युग स्पष्ट संकेत देता है कि अब नारी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है।

नारी है शक्ति, नारी है शान, 

नारी ही भारत की पहचान।।

आज महिलाएं सशक्त हो रही हैं, वे आत्मनिर्भर बन रही हैं और समाज की सोच को बदल रही हैं। लेकिन अभी भी उन्हें पूर्ण समानता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए समाज को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

नारी सम्मान के बिना कोई समाज, राष्ट्र या संस्कृति उन्नति नहीं कर सकती। जिस समाज में नारी का अपमान होता है, वह कभी समृद्ध नहीं हो सकता। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने विचारों में बदलाव लाएं और नारी को यथोचित सम्मान दें।

महिला दिवस केवल एक दिवस नहीं, बल्कि एक संकल्प है—नारी के गौरव, सम्मान और सशक्तिकरण का। यह हमें यह सोचने पर विवश करता है कि आज भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने में समाज कहां पीछे रह गया है।

आज के इस शुभ अवसर पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम प्रत्येक नारी को उसका उचित स्थान देंगे, उसे आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करेंगे और समाज में नारी सम्मान की अलख जलाएंगे।


नारी ही घर की पहचान होती है,

 संस्कारों की वह खान होती है।

 जो दे उसे निरंतर आदर-सम्मान,

 बस वही सच्ची संतान होती है।।


महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित

डॉ. कुमुदिनी द्विवेदी 

चांपा, जांजगीर-चापा छग

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