*"माँ, तेरा अद्भुत संसार"* -- *डॉ. रविंद्र द्विवेदी*
संवाद यात्रा /जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत
कविता...
जब पहली बार आँखें खोली,
तेरा चेहरा था सबसे पास।
तेरी गोद ही मेरी दुनिया बनी,
तेरा आँचल मेरा आकाश।
हर दर्द चुपचाप पीती रही,
तू थकती, पर कभी रुकी नहीं।
तेरे स्पर्श में थी वो राहत, माँ,
जो जग की किसी दवा में नहीं।
माँ, तू सिर्फ़ जन्म नहीं देती,
तू जीना सिखाती है।
हिम्मत देती है निराशा में,
प्यार में ख़ुशियाँ छिपा लेती है।
तू भूखी रही, पर मुझे खिलाया,
ख़ुद रोई, मगर मुझे हँसाया।
तूने अपने हर सपने की जगह,
मेरे कल को बेहतर बनाया।
तेरे बिना सब कुछ अधूरा है, माँ,
हर दुआ में तेरा नाम आता है।
अगर मुझे मेरा भगवान चाहिए,
तो मुझे सिर्फ़ माँ का नाम आता है।
तेरे चरणों में जो सुकून है,
वो जन्नत भी न दे पाए।
माँ, तुझसे बढ़कर कोई नहीं,
तेरा पुत्र 'रवि' सदा शीश झुकाए।
*डॉ. रविंद्र द्विवेदी*
शिक्षक एवं साहित्यकार
चांपा,जांजगीर-चांपा,छग







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