क्या छपास रोग ,और आपसी खींचतान के कारण पुलिस कर्मी व्यक्तिगत रूप से बन रहे है विवादित? हर छोटे प्रकरण वाले समाचार मे जिला से लेकर स्थानीय स्तर के बड़े अधिकारियों का मार्गदर्शन और सहकर्मियों का नाम सहित सराहनीय योगदान लिखना कहां तक उचित?

संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत 

इन दिनों चांपा मे पुलिस टीम द्वारा जुआ,सट्टा और प्रतिबंधित नशीली दवाओं की बिक्री के खिलाफ लगातार कार्यवाही की जा रही है .इस कार्यवाही का समाचार पढ़कर एक ओर प्रथम दृष्टया पुलिस की सक्रियता सराहनीय लगती है तो दूसरी ओर इन सब कार्यवाही के पीछे तरह तरह की कहानी भी उभर कर आती है .

पुलिस का छपास रोग कितना सही कितना गलत ?

राजनीति से जुड़े अनेक लोगों मे जिस तरह छपास रोग देखा जाता है ठीक उसी तरह आजकल पुलिस विभाग मे भी छपास रोग का चलन शुरू हो गया है . कुछ दशक पहले पुलिस द्वारा अपराध या अपराधियों के खिलाफ जब कोई कार्यवाही की जाती थी तब समाचार मे हर छोटी कार्यवाही में अधिकारियों और सहकर्मियों का नाम नहीं लिखा जाता था.जब कुछ गंभीर और जटिल प्रकरण सुलझाया जाता था तभी विशेष कार्य करने वालों का नाम सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया जाता था. लेकिन आज यदि पुलिस द्वारा किसी अपराधी पर सामान्य प्रतिबंधात्मक धारा के तहत भी कार्यवाही की जाती है तो जिला स्तर से लेकर स्थानीय बड़े अधिकारियों के मार्गदर्शन में कार्यवाही और बाकी सहकर्मियों का नाम सहित सराहनीय योगदान देने की बात लिखी जाती है .पुलिस की यह समाचार प्रकाशन करवाने की शैली कहां तक उचित है ? क्या इससे उनकी कार्यप्रणाली की गोपनीयता भंग नहीं हो रही है ? क्या समाचार के चलते बड़े अधिकारी और सहकर्मी व्यक्तिगत रूप से अनावश्यक विवादित नहीं बन रहें हैं? इन सवालों का और अपने प्रकाशन संबंधी अधिकारों के बारे मे क्या उचित है क्या अनुचित? यह तो कानून के रक्षक के नाम से जाने जाने वाले पुलिस विभाग के आला अधिकारी ही जाने ,हम तो केवल जनता के बीच चल रही चर्चाओं के आधार पर पुलिस की कार्यशैली की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं .

सटोरिए और साइबर टीम का विवाद ...

कुछ महीने पहले चांपा के एक कथित सटोरिए पर साइबर टीम द्वारा कार्यवाही की गई.यह कार्यवाही विवादों के घेरे मे रही . इस कार्यवाही को लेकर अखबारों मे लगातार समाचार प्रकाशित होता रहा अंततः साइबर टीम पर विभागीय स्तर पर कार्यवाही कर इस विवाद को शांत किया गया. इस प्रकरण के प्रारंभिक समाचार को देखें तो जब कथित सटोरिए उपर कार्यवाही का समाचार छपा तो सब कार्यवाही बड़े अधिकारियों के मार्गदर्शन मे किए जाने की बातें छपी लेकिन जब कार्यवाही विवादों मे घिरी तो बड़े अधिकारियों पर उंगली तक नहीं उठी .ऐसे मे यह सवाल स्वाभाविक है कि जब उक्त कार्यवाही बड़े और कुशल अधिकारियों के मार्गदर्शन मे की गई थी तो फिर पूरी कार्यवाही संदेह के घेरे मे क्यों आई और पूरा प्रकरण विवादित क्यों हो गया था ? 

नशीली कोडिन सीरप और टेबलेट बरामदगी प्रकरण मे सवाल...

दो तीन दिन पहले चांपा पुलिस द्वारा नशीली कोडिन सीरप एवं टेबलेट बेचने वाले को गिरफ्तार किया गया.जब इस प्रकरण की जानकारी देने पुलिस अधिकारियों द्वारा पत्रकार वार्ता रखी गई तब कुछ पत्रकारों ने कार्यवाही को पक्षपात पूर्ण बताते हुए  थाना के निकट ही गांजा बिक्री पर कार्यवाही क्यों नहीं? और इस तरह की सूचना केवल एक ही प्रधान आरक्षक को ही क्यों मिलती है ?जैसे सवाल पुछ कर पुलिस अधिकारियों को उलझन मे डाल दिया था.पत्रकारों ने बकायदा इसका समाचार न्यूज पोर्टल एवं अखबारों मे प्रकाशित भी किया.

अवैध कारोबार में पुलिसिया कार्यवाही सजगता के कारण नहीं बल्कि पुलिसकर्मियों की आपसी खींचतान का परिणाम है ? 

इन दिनों पुलिस द्वारा जुआ सट्टा शराब जैसे अवैध कारोबार पर जिस तरह से कार्यवाही की जा रही एक ओर इसकी प्रशंसा की जा रही है तो दूसरी ओर पुलिस कर्मियों के बीच आपसी खींचतान के चलते एक दूसरे के मददगारों को पकड़वाने की बात भी कही जा रही है.दरअसल पुलिस की कार्यप्रणाली ही ऐसा है कि उसे हर वर्ग के लोगों से संपर्क बनाए रखना होता है और इसी आधार पर अपने सूचना तंत्र को मजबूत बनाना पड़ता है . लेकिन इसी बीच कुछ पुलिसकर्मियों पर अवैध कारोबारियों को संरक्षण देने तथा उनसे वसुली करने का आरोप भी लगने लगता है.और कई बार आरोप साबित भी हो जाता है .खैर..इन दिनों चांपा पुलिस के कुछ जवानों पर व्यक्तिगत आरोप लग रहे है और उनके कारण पुरे विभाग की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है ऐसी स्थिति मे उच्चाधिकारियों को ध्यान देने और कार्यशैली मे सुधार लाने की आवश्यकता बनी हुई है.

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