पालिका उपाध्यक्ष के लिए जिस तरह से दावेदारी हो रही है उसे देखते हुए बगावत की संभावना. पार्षदों को एकजुट रखते हुए रणनीति बनाना होगा भाजपा को

 

संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत 


नगरपालिका चुनाव के बाद अब चांपा पालिका मे उपाध्यक्ष का चुनाव होना है.यह चुनाव पालिका के निर्वाचित पार्षदों के बीच ही होगा.इसलिए कांग्रेस और भाजपा के निर्वाचित पार्षद अपने अपने हिसाब से रणनीति बनाने लगे है . कुल 27 पार्षदों वाले चांपा नगरपालिका मे 15 पार्षद भाजपा के 11 पार्षद कांग्रेस के और 1 पार्षद निर्दलीय चुन कर आएं हैं . चूंकि पालिकाध्यक्ष पद भाजपा के पास है और पालिका मे बहुमत भी भाजपा का है ऐसे मे भाजपा पार्षद काफी उत्साहित हैं और अपने अपने हिसाब से उपाध्यक्ष पद पर काबिज होने के लिए रणनीति बनाने मे लगे हैं . भाजपा के कुछ पार्षदों ने उपाध्यक्ष पद को लेकर समाचारों के माध्यम से अपने पक्ष मे माहौल बनाने का प्रयास कर रहें है . कोई महिला को उपाध्यक्ष बनाने के पक्ष मे ,तो कोई दो तीन बार चुनाव जीत चुके पुराने पार्षद  के पक्ष मे तो वहीं कुछ पार्षद अपने भारी बहुमत से जीतने को आधार मानकर पालिका उपाध्यक्ष पद हासिल करना चाहते हैं .

उपाध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस खेमे में सार्वजनिक रूप से हलचल दिखाई नहीं दे रही लेकिन कांग्रेस की सारी रणनीति भाजपा पार्षदों के कदम पर ठहरी हुई है.कांग्रेस को भरोसा है कि जिस प्रकार भाजपा मे दावेदार उभर रहे हैं उससे भाजपा पार्षदों मे बगावत होना तय है यही कारण है कि कांग्रेस अभी तक पालिका उपाध्यक्ष को लेकर चुप है 

वहीं एक ओर जातीय समीकरण को ध्यान मे रखते हुए भी गुपचुप तरीके से रणनीति बन रही है.इस रणनीति के तहत कांग्रेस फायदा उठाते हुए उपाध्यक्ष पद को हासिल करना चाह रही है.दर असल कांग्रेस और भाजपा से जुड़े एक विशेष समाज के आठ पार्षद चुन कर आएं हैं यदि जातीय समीकरण को ध्यान मे रखकर इनमें से किसी एक को उपाध्यक्ष बनाने की रणनीति बनती है तो उसका फायदा कांग्रेस को ज्यादा हो सकता है लेकिन यह सब भाजपा पार्षदों के बगावती तेवर के चलते होगा .

पालिकाध्यक्ष एवं भाजपा मंडल अध्यक्ष के लिए परीक्षा की घड़ी..

नगरपालिका चांपा मे भाजपा की बहुमत है और उपाध्यक्ष चुनाव को लेकर जिस तरह भाजपा के नवनिर्वाचित पार्षद उत्साहित हैं और अपने आप को प्रबल दावेदार मानकर चल रहे हैं और किसी भी सूरत मे उपाध्यक्ष बनना चाह रहे हैं उनके बीच तालमेल बिठाकर उपाध्यक्ष पद भाजपा के खाते मे ही रहे यह पालिकाध्यक्ष के लिए भी और भाजपा मंडल अध्यक्ष के लिए भी परीक्षा की घड़ी है . पालिकाध्यक्ष को उपाध्यक्ष एवं पार्षदों के साथ मिलकर पांच वर्ष काम करना है इस दृष्टि से उपाध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो अध्यक्ष के साथ बेहतर तालमेल बिठाकर कार्य कर सके.वहीं दूसरी ओर भाजपा मंडल अध्यक्ष के लिए भी परीक्षा की घड़ी है पार्षद निर्वाचित होने के बाद पार्षद केवल पालिका मे ही व्यस्त न रहे  और उसका लाभ संगठन को मजबूत बनाने मे भी मिल सके इस बात ख्याल भाजपा मंडल अध्यक्ष को रखना होगा.

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