शक्ति, भक्ति और प्रकृति से साक्षात्कार करने की यात्रा है अमरनाथ यात्रा जिस शिविर मे रात बिताए, दूसरे दिन सुबह वहां आतंकी हमले की घटना सुन तन मन सिहर उठा था.

संवाद यात्रा /जांजगीर-चांपा /छत्तीसगढ़ /अनंत थवाईत 

देवाधिदेव महादेव के प्रिय सावन मास मे लाखों हिन्दू भक्त कश्मीर स्थित अमरनाथ गुफा मे बर्फानी बाबा के दर्शन हेतु पहुंचते हैं .कई बार अमरनाथ यात्रा मे रुकावट डालने आतंकियों द्वारा धमकी दी जाती है और श्रद्धालुओं पर हमला भी किया जाता रहा है. लेकिन इन आतंकी धमकी और हमलों से महादेव के भक्तों मे और जोश उमंग भर जाता है और लाखों की संख्या मे लोग बाबा बर्फानी के दर्शन हेतु अमरनाथ की यात्रा करते हैं.जिस कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता है उस कश्मीर के अमरनाथ गुफा मे स्वनिर्मित शिवलिंग,बाबा बर्फानी का दर्शन करने की यात्रा शक्ति, भक्ति और प्रकृति से साक्षात्कार करने की यात्रा है .


ऊंची ऊंची पहाड़ी,आकाश को छुने की चाहत मे बांह पसारे हरे भरे देवदार तथा चिनारों के विशाल वृक्षों के नयनाभिराम दृश्य देखते हुए जैसे जैसे पर्वत की चढ़ाई शुरू होती है वैसे-वैसे हरियाली पीछे छुटती जाती है और फिर पर्वत मे दुर्गम पगडंडियों के बीच लाठी के सहारे पैदल या फिर घोड़े से चौदह हजार फीट की ऊंचाई की यात्रा करना बड़ा रोमांचकारी होता है .कभी भी बारिश हो जाती है और भीगते हुए या फिर प्लास्टिक (बरसाती) ओढ्कर चलना पड़ता है.बीच बीच मे कहीं-कहीं बर्फ की ग्लेशियर भी दिखाई पड़ती है .जिस पर सेना के जवानों द्वारा अस्थाई पुल बनाकर यात्रियों को पार कराया जाता है.

आज से तेइस वर्ष पूर्व 2002 मे मुझे अपने मित्रों,प्रदीप नामदेव, पुरुषोत्तम शर्मा, हरीश सलुजा ,मनोज शर्मा के साथ अमरनाथ यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था.सावन आने के साथ ही बर्फानी बाबा का नाम लेते ही अमरनाथ यात्रा किसी चलचित्र की भांति स्मृति पटल पर उभरने लगती है .


जहां भगवान भोले शंकर ने माँ पार्वती को अमरकथा सुनाकर अमरत्व प्रदान किया था. उस पावन , मन भावन धरा को करीब से देखने तथा हिम निर्मित शिवलिंग का दर्शन करने की इच्छा लिए आतंकवादियों की धमकी की परवाह किए बिना हम  जब अपने मित्रों के साथ एक अगस्त को जम्मू पहुंचे तो वहां सुरक्षा व्यवस्था देखकर मन को तसल्ली हुई कि बिना किसी विघ्रबाधा के हमारी यात्रा पूरी हो जाएगी. जिस दिन हमने अमरनाथ की गुफा मे हिम शिवलिंग के दर्शन किए उस दिन पहलगांव के नुनवन क्षेत्र में बने यात्रा आधार शिविर में आतंकी हमला हुआ, जिसमें नौ यात्री मारे गए थे तथा लगभग पैंतीस लोग घायल हुए थे. यह समाचार हमें दूसरे दिन श्रीनगर में मिला तो. शरीर में सिहरन सी होने लगी थी क्योंकि एक दिन पहले ही हम उसी आधार शिविर में रात बिताए थे .इस घटना का समाचार टीवी तथा अखबारों के माध्यम से घर वालों को मिला तो वे चिंतित हो गए थे . उस समय मोबाइल का जमाना नहीं था .हम दूसरे दिन श्री नगर के पब्लिक टेलीफ़ोन बुथ से घर वालों को अपने सुरक्षित होने की सूचना दिए .खैर भगवान भोले शंकर की कृपा से हमारी यात्रा सफल रही यात्रा के दौरान जिन बातों का अनुभव मुझे मिला उसे मैं आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं .



 "सेना और पुलिस में फर्क"

 जम्मू से चंदनबाड़ी तक यात्रियों की कड़ी जांच के बाद वाहनों के काफिलों के आगे पीछे हथियारों से लैस सेना के जवानों की गाड़ियों को देखकर ऐसा लगता था कि हम किसी तीर्थ यात्रा पर नहीं बल्कि किसी देश की सीमा से गुजर रहे हैं. यात्रा के दौरान मैंने महसूस किया कि एक ओर सेना के जवान अपनी ड्यूटी निभाने के साथ ही खुशी खुशी यात्रियों का स्वागत करते हुए उत्साहवर्धन कर रहे थे तो दूसरी ओर जम्मू कश्मीर की स्थानीय पुलिस का व्यवहार सामान्य था. और कहीं-कहीं उनके चेहरे पर झल्लाहट भी दिखाई दे रही थी.

 "अद्भुत सेवा भावना"

"'नर सेवा ही नारायण सेवा है' इस बात को अमरनाथ यात्रा के दौरान चरितार्थ होते देखा जहां लोगों का पहुंचना कठिन है वहां पर लाखों करोड़ों रुपये खर्च करके शिवभक्तों को भोजन, पानी, चिकित्सा, सोने के लिए कंबल-रजाई आदि हर प्रकार का निःशुल्क सहयोग देकर सेवा समिति के सदस्य आनंदित हो रहे थे. सेवा समिति के पंडालों पर लगे बेनर में लिखे यह वाक्य 'भूखे को अन्न प्यासे को पानी, जय बाबा अमरनाथ बर्फानी' पढ़कर और सेवादारों की विनम्रता, अपनापन और मुस्कान बिखेरते चेहरे के बीच लंगर में खाने पीने के लिए आग्रह करने के अंदाज से हम उनके आगे नतमस्तक हो गए, पूरे महीने भर यात्रा के दौरान लंगर, भंडारा लगाने वालों में पंजाब, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश आदि की सेवा संस्थायें अधिक दिखाई दी. 


"यात्रा मार्गों का महत्व"

अमरनाथ की यात्रा मार्ग में अनेक ऐसे स्थान हैं जिनका पौराणिक काल से अपना एक अलग महत्व है. एक दो स्थानों पर तो यात्रियों को रात भी गुजारनी पड़ती है

"पहलगांव"

बर्फानी बाबा अमरनाथ की यात्रा पहलगांव से शुरू होता है. यात्री सुबह जम्मू से निकल कर शाम तक पहलगांव पहुंचते हैं और रात्रि विश्राम यहां बने यात्रा आधार शिविर में करते हैं, पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने माँ पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए ले जाते समय अनंतनाग में बेशुमार नागों को छोड़ने के बाद अपना वाहन नंदी (बैल) पहलगांव में छोड़ा था. नन्दी (बैल) के कारण इसे बैलगांव कहा जाता था जिसे धीरे-धीरे लोग पहलगांव के नाम से जानने लगे.



 "चंदन बाड़ी"

चंदन बाड़ी के बारे में मान्यता है कि भगवान भोले शंकर ने यहां अपने माथे का चंदन छोड़ा था. चंदन बाड़ी समुद्रतल से 9500 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी नदियों के संगम में छोटी सी घाटी के रूप में स्थित है. पहलगांव से सोलह कि.मी. दूर ऊंचे-ऊंचे वृक्षों, नदियों के बीच मनोरम छटा बिखेरते चंदनवाड़ी से ही अमरनाथ के लिए पैदल यात्रा प्रारंभ होती है.

 "पिस्सू घाटी"

पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार देवता और राक्षस महादेव के दर्शनों के लिए आए तो पहाड़ पर पहले चढ़ने की बात को लेकर दोनों में युद्ध होने लगा तब देवताओं ने भोले शंकर का ध्यान किया फिर उनकी कृपा से उन्होंने राक्षसों को मार मार कर उनका चूर्ण बना दिया. जिस स्थान पर देवताओं ने राक्षसों का पूर्ण बना दिया वहां राक्षसों की अस्थियों का ढेर पहाड़ के समान हो गया. इस लिए इस पहाड़ का नाम पिस्सू घाटी पड़ा.



 "शेषनाग"

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भगवान भोले शंकर ने माँ पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए जाते समय शेष नाग को यहाँ नियुक्त किया था ताकि यहां से आगे कोई भी प्राणी जा न सके. यह स्थान शांत है बताते हैं कि शेष नाग आज भी झील में रहता है और कभी-कभी उसके दर्शन भी होते हैं. यह झील लिद्दर नदी का उद्गम स्थल भी है. 



"गणेश पर्वत"

गणेश पर्वत अमरनाथ यात्रा की सबसे ऊंचाई वाला पर्वत है. यह साढ़े चौदह हजार फीट ऊंची है. मान्यता है कि महादेव ने पार्वती को अमर कथा सुनाने जा रहे थे तो रास्ते में वे अपनी प्रिय चीजें एक-एक कर छोड़ते जा रहे थे. इस पर्वत शिखर पर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को बिठा दिया था. तब से इस पर्वत का नाम गणेश पर्वत पडा यहां स्थानीय बोली में लोग इसे गणेश टाप भी कहते हैं. 

"पंचतरणी" 

कहा जाता है कि जब भोलेशंकर पार्वती माँ को अमरकथा सुनाने के लिए यहां से गुजरे तो उन्होंने नटराज का रूप धारण कर लिया था, नटराज स्वरूप में नृत्य करते समय त्रिनेत्रधारी भोले शंकर की जटाएं खुल कर बिखर गईं जटाओं के खुलते ही गंगा भी निकल गई और धरा पर पांच दिशाओं में बह निकली. तभी से इस क्षेत्र का नाम पंचतरणी पड़ा.

अनंत थवाईत 

स्वतंत्र पत्रकार चांपा 

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