न.पा.मे बीस लाख रुपए के होने वाले कथित टेंडर घोटाले के प्रयास को रोकने का प्रयास या इसके आड़ में नपाअध्यक्ष, उपाध्यक्ष को हटाने का मार्ग बनाने का प्रयास ? विचित्र खेल चल रहा है पालिका के पार्षदों के बीच


    संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत



चांपा नगरपालिका के चौदह पार्षदों ने नगरपालिका मे कथित रुप से बीस लाख रुपए के संभावित टेंडर घोटाले की ओर ध्यानाकर्षण कराते हुए मुख्य नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखकर टेंडर निरस्त करने की मांग की है । पार्षदों की यह मांग समाचार की सुर्खियां बन नगर के लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है । लोग इस समाचार को लेकर इसके पीछे की कहानी बताते हुए अपने अपने तर्क भी दे रहे हैं । उन्ही चर्चाओं के आधार पर हम कुछ बिंदुओं को सुधी पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं..... 


पार्षदों की प्रशंसा और उन पर शंका ......

आम तौर पर घोटाला होने के बाद शोर शराबा होता है और आरोप लगता है । लेकिन पालिका के पार्षदों ने कथित रुप से संभावित घोटाले को रोकने हेतु एकजुट होकर आवाज उठा रहे है । इस बात को लेकर लोगों के अलग अलग विचार हैं कुछ लोग कह रहे है कि पार्षदों का यह कदम प्रशंसा के योग्य है तो वहीं कुछ लोग पार्षदों पर शंका व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि यह सब अपने अपने चहेते ठेकेदारों को काम दिलाने के नाम पर दवाब की रणनीति के तहत एक जुट होकर किया जा रहा है ।

दल हित छोड़ ,धन बल हित की राह पर चले पार्षद 

चांपा पालिका के पार्षदों ने जनता को भावनात्मक रुप से प्रभावित करने के लिए एक वाक्य सुत्र तैयार किया हुआ है, और वे कहते है कि नगरहित के लिए हम सभी एक है इसी कारण कांग्रेस और भाजपा के पार्षद एक साथ मिलकर आवाज उठाते है । उनकी यह बात एक बारगी सुनने मे ठीक लगती है लेकिन इस एक जुटता के पीछे बड़ी कहानी छिपी है । जिसको राजनीति से जुड़े लोग ही समझ पाएंगे । और इस राजनीति की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि पार्षदों ने अपने अपने दलों के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था और उसी आधार पर जनता ने उन्हें चुना है किन्तु जीत कर पालिका मे जाने के बाद ये पार्षद अपने दलहित की भावना को भूलकर धनहित और बलहित की राह मे चलने लगे है यही कारण है कि ये अपनी दलगत भावना को भूलकर एक पत्र मे अपनी शिकायत लिखते हैं और अधिकारियों के पास भेजते है । गलत कार्यों या अनियमितताओं का विरोध करना अच्छी बात है लेकिन विरोध भी अपने दलगत भावना के आधार पर होना चाहिए।

अपनी अपनी पार्टी के नियंत्रण मे नहीं है पार्षद

नगरपालिका मे आए दिन किसी न किसी विषय को लेकर वाद विवाद का सिलसिला चलता रहता है । और इन विवादों को पार्षद अपने अपने तरीके से उठाते रहते हैं । अपने पार्षदों पर न तो कांग्रेस का नियंत्रण है और नहीं भाजपा का । इस बात की पुष्टि इन पार्षदों द्वारा उठाए जा रहे कदमों से हो जाती है । आम तौर पर विपक्षी पार्षद किसी मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष पर हमलावार बने रहते है और सत्ता पक्ष के पार्षद अपने पक्ष मे बचाव करते नजर आते हैं । परन्तु चांपा पालिका मे सब कुछ उलटा चलता है एकजुटता दिखाने के नाम पर कांग्रेस और भाजपा के कुछ महत्वाकांक्षी पार्षद एक साथ मिलकर विरोध की दिशा तय करते है और वो भी कुछ चुनिंदा मामलों मे ही । 

भाजपा पार्षद आखिर किसकी सलाह मानते हैं...?

पालिकाध्यक्ष चुनाव के समय कांग्रेस की गुटीय राजनीति तो जग जाहिर है क्योंकि कांग्रेस के दो उम्मीदवारों राजेश अग्रवाल और जय थवाईत ने अध्यक्ष पद के लिए लड़ा था और चुनाव मे राजेश अग्रवाल पराजय हुए थे । राजेश अग्रवाल चूंकि पालिकाध्यक्ष रह चुके है और अपने अनुभवों के आधार पर वे पालिका की अंदरूनी राजनीति मे दखल रखते है । इस नाते उनकी राजनीति तो समझ मे आती है। लेकिन भाजपा पार्षद आखिर किसके सलाह पर अपना काम करते है यह सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि पालिका मे नेता प्रतिपक्ष पुरुषोत्तम शर्मा है । और दो तीन भाजपा पार्षदों का पालिकाध्यक्ष चुनाव के समय से उनसे मतभेद बना हुआ है । बताया जाता है कि ये भाजपा पार्षद न तो नेता प्रतिपक्ष से सलाह मशविरा करते और न ही भाजपा के उन नेताओं से सलाह मशविरा करते जो पालिकाध्यक्ष रहे है । 

एक ओर पार्षद नेताप्रतिपक्ष पर सहयोग न करने का आरोप लगाते हैं तो दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष कहते है कि पार्षद जानबूझकर सिर्फ अपने ही पसंद के विषय पर चर्चा करना चाहते है बाकी विषयों पर नहीं ।

घोटाला रोकने का प्रयास या आगामी दिनों मे पालिकाध्यक्ष ,उपाध्यक्ष पर अविश्वास का मार्ग तय करने का प्रयास 

पालिका से जुड़े राजनीतिक सुत्रों के अनुसार संभावित घोटाले को रोकने के नाम पर दरअसल आगामी दिनों मे नगरपालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाए जाने की कहानी तैयार की जा रही है और यही कारण है कि कथित रुप से संभावित घोटाले को रोकने का आवाज बुलंद करते हुए भाजपा कांग्रेस तथा निर्दलीय पार्षदों को एक सुत्र मे बांधकर रखने का प्रयास किया जा रहा ताकि जब कभी अवसर मिले तो नाराज पार्षदों की बढ़ी हुई संख्या के आधार पर नपा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पर अविश्वास का प्रहार किया जा सके।

पार्षदों की एकजुटता अन्य समस्याओं और कार्यों पर क्यों नहीं दिखती?

लोगों का यह भी कहना है कि नगर मे विभिन्न समस्याएं है जिनका निदान करना बहुत जरूरी है इसके बाद भी उन समस्याओं को लेकर ये पार्षद कभी एक जुट नही होते । करोड़ों खर्च होने के बाद भी रामबांधा तालाब का सौंदर्यीकरण नहीं हो पाया और काम मे विलंब करते हुए बजट को सुनियोजित तरीके से बढ़वाने का प्रयास किया जा रहा है। गेमन पुल के पास और रेल्वे स्टेशन के पास सड़क की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है । उसके बाद भी इसके लिए ये पार्षद एकजुटता नहीं दिखाते ।

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