गाया पावस झूमकर कण कण हुआ विभोर : पावसी दोहे महेश राठौर "मलय"


संवाद यात्रा/जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/अनंत थवाईत

ये सावन मनभावन है । रिमझिम बारिश की फुहार से प्रकृति का कण कण एक मधुर एहसास कराता है । पेड़-पौधे, नदी नाले, जीव-जंतु के साथ मानव के मन मस्तिष्क में सावन का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है । जब कोई कलमकार सावन के इस समग्र रुप पर अपनी कलम चलाते हुए शब्द चित्र उकेरता है तो उसकी बात ही निराली होती है। मन के कोमल भावनाओं से उकेरे गए शब्द सीधे लोगों के हृदय को स्पर्श करते हुए प्रकृति से साक्षात्कार कराती है । महेश राठौर "मलय" ऐसे ही एक कलमकार है जिन्होंने इस मन भावन सावन मे अपने मन की भावनाओं को सुंदर  शब्दों में पिरोते हुए पावस के एकादश ( ग्यारह ) दोहों के माध्यम से सावन की समग्रता को सुधी पाठकों के लिए लिखा है .. प्रस्तुत है यहां उनकी लिखी दोहे.....

  (1) 

गाया पावस झूमकर, कण कण हुआ विभोर ।

विचरण करते व्योम पर ,मेघ लगे चितचोर ।।

(2)

सराबोर धरती हुई ,भरे तलैया ताल।

उफन गई नदियां सभी, झीलें मालामाल।।

 (3)

प्रेम मुदित पृथ्वी हुई किए हरित श्रृंगार।

प्रिय अंबर कै देखती अपलक बारंबार ।।

(4)

वीर बहूटी रेंगती हौले हौले लाल ।

देह मलमली कीट की लगती अहा..!कमाल ।।

(5)

राधा लगती दामिनी बादल नंदकिशोर ।

वर्षा रानी प्रीत की परम पावनी डोर ।।

 (6)

झांके नीरद ओट से दुलहिन जैसी धूप।

कभी कभी  ही लाजवश,प्रकटाती है रुप ।।

 (7)

भौमिक रमकर खेत मे डाल रहें हैं बीज ।

श्रम ही जिनका भाग्य है ,वे कब पहनते ताबीज ?।।

 (8)           

पंकिल पंकिल पंथ है रखो संभलकर पांव ।

बना दिया बरसात ने घाव भरा हर ठांव ।।

(9)

घनक घटाएं चूमती पर्वत तुंग कपोल ।

जाना गिरि ने प्रेम को कहते क्यों अनमोल ?।।

 (10)         

दादुर दर्राकर कहे आजा सजनी पास ।

बढ़ी पनैले जीव मे प्रबल प्रेम की प्यास ।।

(11)

यौवन तापित गात को ठंडक दे बरसात।

जलाशयों मे फैलते शीश उठा जलजात।।

     मलय राठौर "मलय"

         साहित्यकार

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