मैं खराब या आप खराब ? कौन देगा इसका जवाब ? "आम नागरिकों के नाम जख्मी सड़क का खुला पत्र"

 



मेरा उपयोग करते हुए अपनी मंजिल पर पहुंचने वाले प्रिय नागरिकों राहगीरों ...! 

आज हर कोई चाहे वो चार पहिया वाहन चालक हो, दोपहिया वाहन चालक हो ,या फिर पैदल ही चलने वाला क्यों न हो ,सबकी जुबान से एक ही बात निकलती है कि यहां कि सड़कें बहुत खराब हैं ।

मेरी खराब स्थिति को लेकर आप लोग अपने अपने ढंग से प्रदर्शन कर भी कर रहे हो । मुझे मालूम है कि मेरी दयनीय हालत देखकर आपकी संवेदना जाग उठी हैं । आप सब मुझे सुंदर और सुस्सजित देखना चाहते हो पर आप सबका प्रयास निष्फल हो रहा है । जानते हो क्यों ? क्योंकि मेरे नाम पर आप सब राजनीति कर रहे हो । मेरी बदहाली पर  कोई केन्द्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हो तो कोई राज्य सरकार को दोषी ठहरा रहे हो । तो कोई अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हो । आप किसी को भी दोषी ठहराओ इसके लिए स्वतंत्र हो । लेकिन इन सब बातों के बीच आप सब मुझे ही खराब कहते हो तो मुझे बहुत पीड़ा होती है । जरा सी भी दुर्घटना हुई तो आपके मुंह से मेरे खिलाफ ही पहला शब्द निकलता है । ये सड़क "जानलेवा" है । कई लोग तो मुझे लापता ही बता देते हो और कहते हो कि सड़क गड्ढे में गुम हो गई है । मेरी हालत पर कोई व्यंग्य लिख रहा है तो कोई कविता लिख रहा हैं । कोई धान बो रहा है, तो पौधा लगा रहा है । मेरे पास गायों को देखकर कई लोग तो मुझे गोठान कहकर संबोधित करते हैं । जिसकी जितनी बुद्धि वो उसी हिसाब से मुझे खराब कहने और करने लगा है । 

आप लोगों कि ये हरकत देखकर मैं आज आपसे सवाल कर रही हूं मैं खराब या आप सब खराब ? कोई मेरी हालत सुधारने के लिए आवाज उठाता है तो आप लोग आवाज उठाने वाले को किस दल का है ? ये कौन है ? ये किस हैसियत से आवाज उठा रहा है ? क्या ये अपना श्रेय लेना चाहता है ? जैसे अनगिनत सवाल खड़े करते हो । कुछ दिन पहले  भाजपा ने मेरी हालत सुधारने के लिए लोगों से एक एक रुपया लेकर छै सौ रुपया इकट्ठा किया । आम आदमी पार्टी ने तो आप नागरिकों को ही दोषी मानते हुए कहा "दारू मुर्गा खाओगे तो ऐसा ही सड़क पाओगे" उनका यह आंदोलन भी राजनीतिक चश्मे का भेंट चढ़ गया उन्हें आप लोगों का जनसमर्थन नहीं मिला । मेरी हालत सुधारने के लिए जिला मुख्यालय मे भाजपा सांसद विधायक ने आवाज बुलंद किया पर सत्ता पक्ष के लोगों ने उसे भी नौटंकी करार दे दिया । सत्ता पक्ष से जुड़े लोग मजबुरी कि जंजीर मे जकड़े हैं वे मेरी हालत सुधारने के लिए आंदोलन मे स्वयं आगे नहीं आएंगे । राजनैतिक दलों के दलदल मे फंसे स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की हालत को देखकर अब कुछ युवा सामने आएं हैं आमरण-अनशन कर रहे हैं । पर उनके मंच को भी कुछ लोग चुगली बाजी का मंच बना रहे हैं एक तरफ उनको समर्थन दे रहे हैं तो दूसरी और आंदोलन स्थल मे कौन नहीं आया ? किसने समर्थन दिया ? अमुक आदमी क्यों नहीं दिखा ? जैसे सवालों से आंदोलकारियों के मन मस्तिष्क में लोगों के खिलाफ नफरत का बीज बोने का काम भी किया जा रहा है । खैर.... 

छोड़ो ये सब बातें और सोचो कि मुझ जैसे खराब सड़क को सुधारने आप जैसे दुध के धुले लोग क्यों "अपनी ढपली अपना राग" वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हो ? क्यों नहीं एक हो जाते? और अपनी दलगत भावना भुलकर जिम्मेदार अधिकारियों जनप्रतिनिधियों के खिलाफ क्यों नहीं हल्ला बोलते ? चांपा के उन्नीस सौ तिरासी की घटना को फिर से क्यों नहीं दोहराते ?  मेरी हालत पर रहम खाते न्याय मंदिर ने तो सरकार को लताड़ लगाई है । शीघ्र सुधारने की बात कही है पर मुझे मालूम है न्यायालय भी आदेश दे सकती है पर मेरी हालात को स्वयं नहीं सुधार सकती । घुम फिर कर मामला सत्ता में बैठे मठाधीशों तक पहुंच जाती है और आप सब " जन गण मन अधिनायक जय हे " कहते हुए उन्हीं के इर्द-गिर्द घुमने लगते हो।मुझे खराब कहने वालों मैं आप सब से पुछ रही हूं " मैं सड़क खराब या आप सब लोग खराब " ? 


पीड़ा से कराहती आप सबकी अपनी ....

ज़ख्मी सड़क 

प्रस्तुति..

अनंत थवाईत पत्रकार चांपा 




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