कन्या प्रसन्न तो दुर्गा मां प्रसन्न : नवरात्रि में कन्यापूजन एवं राजभोग।
चांपा संवाद यात्रा
शशिभूषण सोनी की क़लम से••••
शारदीय नवरात्रि की तिथि नवमी का अलग ही महत्ता हैं ।ऐसी मान्यता हैं कि नवरात्रि के नौ दिनों में दैविक शक्ति की प्रतीक मां जगदम्बा मनुष्य लोक में भ्रमण करने के लिए आती हैं। इन दिनों की गई पूजा-अर्चना से देवी भक्तों पर प्रसन्न होती हैं। नवें दिन यानि कि नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या को भोजन करवाकर यथाशक्ति दक्षिणा के स्वरुप में उपहार देने की प्रथा हैं ।
आज चौदह अक्टूबर-2021 को "मां चांदनी दुर्गोत्सव समिति, सोनार पारा चांपा" में छोटी-छोटी बालिकाओं में कन्यापूजन हेतु आने पर देवी दुर्गा का रुप देखने को मिला । सबसे पहले आमंत्रित कन्याओं का चरण धोकर आसन पर बेठाया गया फिर विधि-विधान से पूजन करके उन्हें भोजन कराया गया।
हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में कन्यापूजन को नवरात्र व्रत का अभिन्न अंग माना गया हैं । ऐसा माना जाता हैं कि दो-वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या देवी के शक्ति स्वरुप की होती हैं । वैसे भी हिंदू धर्म में दो-वर्ष की आयु की कन्या को 'कुमारी' कहा जाता हैं। इसके पूजन से दुःख,भय और दरिद्रता समाप्त हो जाती हैं।
हमारे देश में कन्या को देवी के रूप में पूजा जाता हैं, किन्तु आज़ सर्वाधिक अपराध कन्याओं के प्रति हो रहा है। ऐसे में कन्या-पूजन की सार्थकता कहां ? जब तक हम कन्याओं को यथार्थ में महाशक्ति या देवी का महाप्रसाद नहीं मानेंगे , तब तक कन्यापूजन नितांत ढोंग ही माना जाएगा।






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