हृदय के तारों को झंकृत करती सुलोचना परमार "उत्तरांचली" की कविता "तुम मेरे कौन हो"

कविताएं हृदय के तारों को झंकृत कर देती है शब्दों के स्पर्श से मन की कोमन भावनाएं उभर कर सामने आती है और रचनाकार ख्वाबों के समंदर मे डुबकी लगाते हुए जब सवाल करे तो यह सवाल रचना पढ़ने वालों के मन पर भी छाप छोड़ जाती है । यहां प्रस्तुत है एक ऐसी कविता जिसे देहरादून उत्तराखंड की वरिष्ठ महिला साहित्यकार सुलोचना परमार "उत्तरांचली" ने लिखा है .......

तुम मेरे कौन हो.....


चुपके से ख़्वाबों में आना

आकर  गालों को सहलाना ।

घुंघराली लट जो चूमें माथा

 झट से उसको दूर हटाना ।


मन के तारों को छेड़ते हो

  तुम मेरे कौन हो


हिचकियाँ भी आएं रोज

दिल धड़के मेरा बार बार ।

हर आहट पे ऐसा लगे जैसे

आ रहे है वो अबकी बार ।


इतना प्यार लुटाते हो

   तुम मेरे कौन हो


तेरे बिना बेचेंन रहे दिल

सांसों की सरगम में हो तुम

 आओ हम तुम एक हो जाएं

साथ जियें और साथ मरें हम


कभी प्यार से बता तो दो

  तुम मेरे कौन हो


तेरे ख्याल से  खिल उठती है

मन आंगन की बगिया मेरी।

इस देह की धमनी शिराएं

सब स्वागत में रहती हैं तेरी ।


कान में धीरे से कह दो

तुम मेरे कौन हो 



                कवियत्री सुलोचना परमार "उत्तरांचली"

                          देहरादून उत्तराखंड 

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