तीजा उपास : आऊ समारू पहारू के गोठ
संवाद यात्रा/ जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़/ अनंत थवाईत
समारू पहारू के गोठसमारू..... भइया पहारू आज तोर मुंह हर कइसे सुक सुकाय कस दिखत हे । तबियत हर ठीक ठाक हे न?
पहारू..... अरे भाई काल तीजा रहिस त उपास रहेंव । तेकरे सेति थोरकर कमजोरी कस लागत हे ।
समारू..... भइया तोर इहां के हर अपन मइके गय हे तीजा मनाय, त अइसन बखत म कभू अपन परोसी भऊजी के मन ल मोहे खातिर उपास धास के नाटक थोरे करत हस ? बने अमटहा अमटहा खाय बर पाहूं कइके ?
पहारू..... नाटक नइ करत हांव भाई मैं सिरतो म काल उपास रहेंव ।
समारू..... तहूं गजब गोठ करथस भइया .! अरे तीजा उपास माई लोगन मन रइथे। गोसइन मन अपन गोसइया के जिनगी के अवरदा बाढ़य कहिके ये तीजा उपास ल रखथे । ओहू म निरजला । कहूं कहूं कुंवारी छोकरी मन भी अपन पसंद के सुग्घर जांवर जोड़ी पाय बर मनौती मांगत ये तीजा उपास ल रइथे। फेर तोला का सउंख चढ़गे तीजा उपास रखे के ?
पहारू..... मैं अपन मयारू ल बड़ मया करथंव भाई । जब ओहर मोर जिनगी के अवरदा बाढ़य कइके उपास रख सकत हे त मैं हर ओकरो जिनगी के अवरदा बाढ़य तेकर सेति काबर उपास नइ रख सकंव ?
समारू..... मैं जानत हांव तैं बड़ सुआरथी हस भइया । तोर उपास रखे म भी कुछु सुआरथ होही । तैं अपन गोसाइन के अवरदा येकर सेति बाढ़य कहत होबे कि ओ हर जिनगी भर तोर सेवा करय ।तोला रांध पसा के खवाय पियाय ,तोर कपड़ा लत्ता धोय , घर के बरतन मांजय । तोर लइका पिचका के देख रेख करय ।
पहारू..... देख भाई तहूं हर बड़ सक्की मनखे हस । मैं हर कुछु भी करथंव तैं हर शक करे लागथस आऊ कुछु न कुछु मिन मेख निकालबेच्च करथस । अरे भाई जब माई लोगन मन हमर बर अतेक संसो फिकर करथे । हमर बर उपास रइथे गोसइया, बेटा ,भाई येमन जम्मो झन ल कुछु दुख झन होय कइके कतको देवता धामी ल सुमर सुमर के बखत बखत म उपास रइथे त का हमरो कुछु जिम्मेदारी नइ बनय ?
समारू..... जिम्मेदारी तो बनथे भइया लेकिन कमाय धमाय के। जादा से जादा कमावा आऊ घर परिवार के जम्मो मनखे ल खवावा ओमन के हर सउंख ल पुरा करा ,ओमन ल हर बखत खुशी देवा । भले ये चक्कर म हमर खुशी गंवा जाय ।
पहारू..... मैं हर तोर ये गोठ मन ल अच्छा ले समझत हांव भाई ! तैं अइसने गोठ गोठिया के भड़काय के कोशिश झन कर । जब हमन अपन कमाय धमाय के गोठ करत खवाय पियाय ल माई लोगन मेर उटकबो त ओहूं मन घर के काम बुता ल लेके जब अपन गोठ करही त का होही ? जबरन झगरा के सिवाय कुछु नइ होवय । तेकर सेति ये गोठ मन ल टार । मोला उपास रहेके मन लागिस आऊ फेर मयारू बर मोर हिरदे म कतका मया हावय ओला बताय के मउका मिलिस त मैं हर उपास रहेंव ।
समारू..... हिरदे के मया ल बताय बर उपास रखना जरुरी हे का भइया ?
पहारू..... फेर तैं अलकरहा गोठ करे । अरे भाई ठीक हे मान लेंहें कि मया ल परगट करे बर उपास रहेके जरुरत नइ हे । फेर अइसने छोट छोट बात ले मया हर बाढ़थे भाई । परिवार के संग म सुख पाय बर आऊ खुश रहे बर अइसने छोट छोट बात हर कतका जरुरी हे तैं का जानबे ।
समारू..... हमर इंहा तो रिषी मुनि मन कइ कइ दिन ले उपास रइथे आऊ नेता मन भी भुख हड़ताल करत उपास रखथे त ओमन काला अपन मया देखाथे ?
पहारू..... तैं बड़ घख्खर हस भाई मैं सीधा सीधा गोठ करत हांव त आने ताने कोति गोठ ले जाथस । अरे भाई सबके उपास रहेके के अलग अलग ढंग होथे ।आऊ सबके अलग अलग महत्व भी हावय । उपास धास रहे ले हमर तन मन दूनों आरुग होथे । पेट के सफाई भी हो जाथे । मन म उछाह बने रथे । देख भाई अब मोर येहु गोठ ल सुनके फेर कुछु सवाल उठाबे त ठीक नइ होही ! तोर ये उपास के गोठ के चक्कर म बड़ बेर होगे । राशन पानी लेहें निकले रहेंव त तोर मेर भेंट होगे । गोठियात गोठियात बड़ बेर होगे आऊ बेर हो जाही त आज घलव उपास रहे बर परही । अब ये गोठ ल इही मेर छेवर कर ।








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