शिक्षक व शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षक शब्द मात्र से हमारे जेहन मे ज्ञान का भंडार रुपी शख्स की छवि उभर आती है । शिक्षक दिवस पर विशेष आलेख : श्रीमती शांति थवाईत

 डभरा कोटमी मे पदस्थ व्याख्याता श्रीमती शांति थवाईत ने शिक्षक दिवस पर अपने विचारों को शब्दों का रुप देते हुए आलेख लिखा है जिसे हम संवाद यात्रा न्यूज पोर्टल के पाठकों के सामने ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं.....

 शिक्षक यदि ठान ले तो समाज व देश का दशा व दिशा दोनों बदल सकता है । एक शिक्षक मे वह ताकत होती है उसके शब्दों मे वह ओज होता है कि अपने शब्दों की ताकत से समाज मे आमूल चूल परिवर्तन ला सकता है ।

  इतिहास उठा कर देख लीजिए किसी की सत्ता बनाने से लेकर बिगाड़ने मे एक शिक्षक का बहुत बड़ योगदान होता है ।

वर्तमान समय मे शिक्षकीय पेशा पर यह आरोप लगता है कि यह व्यवसायीकरण हो गया है । यह बात पूर्ण रुप से सही है ।लेकिन पुराने युगों मे भी तो शिक्षक जिन्हें गुरु कहा जाता था वो भी तो कुछ हद तक व्यवसायी थे । जब गुरुकुल मे राजा मंत्री सेठ साहूकार के बच्चे पढ़ते थे ।आश्रम मे जाकर रहते थे तो उन गुरुओं को भी भेंट स्वरुप कुछ धन राशि गाय बैल जमीन दान दक्षिणा दिए जाते थे जिनसे उनका आजीविका चलता था ।बदलते समय के हिसाब से जनसंख्या बढ़ते गयी सबको पढ़ने लिखने का अधिकार मिला मुहल्ला गांव शहर मे स्कूल खुलने लगे सभी सामूहिक शिक्षा ग्रहण करने लगे और इन स्कूलो मे शिक्षको की नियुक्ती हुई और शिक्षक वेतन भोगी बना ।

 शिक्षक वेतन भोगी हो या दक्षिणा भोगी हो शिक्षकों का काम आज भी वही है ज्ञान प्रदान करना ।

  आज शिक्षक दिवस है इस अवसर पर अनेकों शिक्षकों का जगह जगह सम्मान हो रहा है। सम्मान दूसरे शिक्षकों को प्रेरित करने के लिए दिया जाता है । मेरी नजरों मे एक शिक्षक को सही सम्मान उसके बच्चों के द्वारा दिया जाता है । यदि हम अपने स्कूली बच्चों की दशा व दिशा अपने शिक्षकीय कार्यों के दम पर बदल दिए तो हमारे लिए यही असली सम्मान होता है ।

 आज एक बहुत चिंता का विषय है कि बड़ बड़े डिग्रीधारी  बड़े बड़े पदों पर आसीन लोगों मे संस्कारों की कमी दिखाई दे रही है ‌परिवार टूट रहे हैं। अकेलापन बढ़ रहा है । बच्चे पढ़ लिख कर पैसों के पीछे भाग रहे हैं और इस भागदौड़ की अंधी दौड़ मे लोगों के जीवन से सुख शांति गायब होते जा रही है क्यों ? 

 क्यों और कैसे इन सबको रोका जा सकता है मेरे विचार से इनको रोकने की जिम्मेदारी भी एक शिक्षक की ज्यादा महत्वपूर्ण होती है ।इसके लिए सरकार को भी चाहिए कि बच्चो को पुस्तकीय ज्ञान के साथ साथ नैतिक ज्ञान व शिक्षा प्रदान करने की दिशा मे कदम उठाए ।इसके लिए पूर्व मे प्रचलित नैतिक शिक्षा को फिर स्कूलो मे अमल लाने की जरुरत है ।

   आज रुपया पैसा बैंक बेलेंस गाड़ी बंगला आधुनिक सुख सुविधा होने के बावजूद लोग सुखी नही है  और न ही संतुष्ट है । धन की मृग मरीचिका मे लोग ऐसे भटक रहे है कि उसका परिणाम अंत मे मानसिक तनाव पर जाकर रुक जाता है और यदि यही तनाव जब ज्यादा होती है तो आत्महत्या पर खत्म हो जाती है । ऐसे कितने उदाहरण हम पढ़ रहे है देख रहे है ।

 देश मे आ रही इस गंभीर समस्या पर एक शिक्षक का कर्तव्य बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह बच्चो को प्राथमिक स्तर मे ही ऐसी शिक्षा प्रदान करे कि बच्चे बडे होने पर भी इधर उधर न भटके।

 शिक्षक के साथ साथ समाज मे रहने वाले हर एक शख्स का यह कर्तव्य है कि वह आगामी पीढी को नशा से चाहे वो धन का हो या नशीली पदार्थो का सबको दूर रखने का प्रयास करे व समाज को देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने मे अपना महति भूमिका निभाएं ।

          श्रीमती शांति थवाईत ( व्याख्याता एल बी ) 

                शा उ मा वि कोटमी ( डभरा )

                जिला जांजगीर चांपा ( छ ग )



टिप्पणियाँ

  1. शिक्षक उस मोमबत्ती की तरह है जो स्वयं जलकर औरों को प्रकाशित करता है अपना तन मन धन समर्पित कर शिक्षक बच्चों के हित में कार्य करता है बच्चों की खुशी ,बच्चों का उत्साह, बच्चों का ज्ञान वर्धन शिक्षक को अपनी सफलता महसूस होती है। शिक्षक विद्यार्थी को अपने से भी श्रेष्ठ स्थान पर देखना चाहता है।शिक्षक मां -पिता, गुरु की भूमिका में होता है जो अपने विद्यार्थी को हरेक क्षेत्र में आगे बढ़ता हुआ, सफलता की बुलंदियों को छूता हुआ देखना सुनना चाहता है। शिक्षक माटी के लौंदें को सही आकार देता है जिस प्रकार कुम्हार बाहर से ठोक कर अंदर से सहारा देते हुए सुंदर आकर्षक रूप प्रदान करता है इसी तरह शिक्षक विद्यार्थियों को विभिन्न तरीकों से शिक्षित करना चाहता है ताकि वह समाज के अंधेरे- उजाले, हानि- लाभ, दुख- सुख सभी को सहन करते हुए रास्ता निकाल सके और एक सही व्यक्तित्व के रूप में समाज में स्थापित हो सके। व्यक्ति- व्यक्ति से मिलकर परिवार,परिवार से समाज बनता है ,समाज से वाह तहसील जिला प्रदेश राष्ट्र बनता है ।अतः एक बचे को सँवारकर एक ब्यति को सुधार कर कर्तव्यनिष्ठ, संस्कारवान बनाकर देश के विकास में शिक्षा सहयोग करता है। शिक्षक आज मार्गदर्शक के रूप में काम कर रहा है जिस प्रकार राख में दबी हुई चिंगारी से राख को हटा दिया जाए चिंगारी पुनः प्रज्वलित हो जाती है इसी तरह शिक्षक विद्यार्थी में दबे हुए जिजीविष, जिज्ञासा ,उत्साह को पल्लवित करते हुए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करता है ।जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखारता है। सद्गुणों से युक्त व्यक्ति समाज को देश को नई दिशा दे सकता है इसीलिए शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा गया है सत्यमेव जयते श्रमेव जयते।

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  2. शिक्षक उस मोमबत्ती की तरह है जो स्वयं जलकर औरों को प्रकाशित करता है अपना तन मन धन समर्पित कर शिक्षक बच्चों के हित में कार्य करता है बच्चों की खुशी ,बच्चों का उत्साह, बच्चों का ज्ञान वर्धन शिक्षक को अपनी सफलता महसूस होती है। शिक्षक विद्यार्थी को अपने से भी श्रेष्ठ स्थान पर देखना चाहता है।शिक्षक मां -पिता, गुरु की भूमिका में होता है जो अपने विद्यार्थी को हरेक क्षेत्र में आगे बढ़ता हुआ, सफलता की बुलंदियों को छूता हुआ देखना सुनना चाहता है। शिक्षक माटी के लौंदें को सही आकार देता है जिस प्रकार कुम्हार बाहर से ठोक कर अंदर से सहारा देते हुए सुंदर आकर्षक रूप प्रदान करता है इसी तरह शिक्षक विद्यार्थियों को विभिन्न तरीकों से शिक्षित करना चाहता है ताकि वह समाज के अंधेरे- उजाले, हानि- लाभ, दुख- सुख सभी को सहन करते हुए रास्ता निकाल सके और एक सही व्यक्तित्व के रूप में समाज में स्थापित हो सके। व्यक्ति- व्यक्ति से मिलकर परिवार,परिवार से समाज बनता है ,समाज से वाह तहसील जिला प्रदेश राष्ट्र बनता है ।अतः एक बचे को सँवारकर एक ब्यति को सुधार कर कर्तव्यनिष्ठ, संस्कारवान बनाकर देश के विकास में शिक्षा सहयोग करता है। शिक्षक आज मार्गदर्शक के रूप में काम कर रहा है जिस प्रकार राख में दबी हुई चिंगारी से राख को हटा दिया जाए चिंगारी पुनः प्रज्वलित हो जाती है इसी तरह शिक्षक विद्यार्थी में दबे हुए जिजीविष, जिज्ञासा ,उत्साह को पल्लवित करते हुए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करता है ।जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखारता है। सद्गुणों से युक्त व्यक्ति समाज को देश को नई दिशा दे सकता है इसीलिए शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा गया है सत्यमेव जयते श्रमेव जयते।
    चंद्रकिरण सोनी

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