आंदोलन में शामिल राजकरण दुग्गड़ को मरणोपरांत शहीद क्यों कहा जाता है...?

 


( चांपा संवाद यात्रा ) 1983 मे चौबीस सितंबर को चांपा में आंदोलनकारियों के ऊपर पुलिस द्वारा किए गए लाठी गोली चालन मे अपनी जान गंवाने वाले छात्र राजकरण दुग्गड़ को शहीद क्यों कहा जाता है ? किसने दुग्गड़ को शहीद की उपाधि दी ? राजकरण दुग्गड़ का नगर हित मे क्या योगदान था ? यदि इस तरह के सवाल उठे तो चांपा के नागरिकों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए । क्योंकि नगर के कुछ शरारती तत्व भविष्य मे इस तरह के सवाल उठा सकते है । हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि कल राजकरण दुग्गड़ उद्यान मे स्थापित राजकरण दुग्गड़ की प्रतिमा स्तंभ का सौंदर्यीकरण एवं शिलालेख के लोकार्पण समारोह को लेकर नगर के कुछ शरारती तत्वों ने सवाल उठाते हुए नगरपालिका परिषद को उलझन मे डालने की कोशिश की । इन शरारती तत्वों ने शिलालेख किसकी अनुमति से लगाया गया ? नगर पालिका ने अनुमति दी है कि नहीं ? हर वर्ष वहां केवल श्रद्धांजलि सभा होती है फिर शिलालेख का लोकार्पण कार्यक्रम क्यों हो रहा है ? जैसे सवालों से नगरपालिका परिषद को उलझन मे डालने का भरपूर प्रयास किया । इनका प्रयास था कि किसी भी प्रकार से कार्यक्रम में विध्न पैदा हो और शिलालेख लोकार्पण कार्यक्रम स्थगित हो, लेकिन ये अपने मनसूबे पर कामयाब नहीं हो पाए और पुरा कार्यक्रम संपन्न भी हो गया ।

उल्लेखनीय है कि राजकरण दुग्गड़ उद्यान मे राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा द्वारा प्रदीप नामदेव के संयोजकत्व मे प्रतिमा निर्माण समिति बनाकर जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए राजकरण दुग्गड़ की प्रतिमा स्थापित की गई है यह प्रतिमा अनुपम श्रीवास्तव , अनंत थवाईत , पुरूषोत्तम शर्मा , गणेश श्रीवास , संतोष सिंह जब्बल , हरीश सलूजा , संतोष थवाईत तथा राजन गुप्ता द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग से बनी है । राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा ने नगरपालिका परिषद से लिखित अनुमति लेकर 24 सितंबर 2005 को इसकी स्थापना की है । स्थापना के समय प्रतिमा स्तंभ मे अस्थाई तौर पर पेंट से लिखावट की गई थी । लेकिन पानी बरसात के चलते वह लिखावट मिट गई थी । प्रतिमा स्तंभ मे प्रतिमा के संबंध मे कुछ भी उल्लेख नहीं होने के कारण लोगों को सही जानकारी नहीं हो पाती थी । इस स्थिति को देखते हुए इस वर्ष कृष्णा देवांगन ने अपने स्वयं के खर्चे से शिलालेख तैयार करवाया जिसका लोकार्पण नगर के प्रतिष्ठित समाजसेवी एवं पूर्व मे पत्रकार रहे कैलाश चंद्र अग्रवाल जी के हाथों कराया गया ।

प्रतिमा निर्माण समिति के सदस्यों ने कहा कि नगर हित के लिए राजकरण दुग्गड़ ने अपना बलिदान दिया । यदि किसी को लगता है कि ऐसे बलिदानी युवक की प्रतिमा स्तंभ का सौंदर्यीकरण करना और शिलालेख का लोकार्पण करना अपराध है तो यह अपराध हमें स्वीकार है ।

टिप्पणियाँ

Popular Posts

सुबह हो या शाम ,हर क्षण आनंदित करता है आनंदम धाम यहां होती है वृंदावन के निधिवन की दिव्य अनुभूति आनंदम धाम रिसोर्ट मे है सद्गुरु रितेश्वर जी महाराज का आश्रम