लोक साहित्य अनेक अर्थों मे अपना गहरा रहस्य ,लोक जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं और विधाओं के द्वारा एक विलुप्त तत्व को जीवंत करता है : श्रीमती गीता शर्मा । डा.रमाकांत सोनी रचित "हाना- जिनगी के गाना" (लोकोक्तियां संग्रह ) की लघु समीक्षा
संवाद यात्रा / जांजगीर-चांपा / छत्तीसगढ़ /
चांपा निवासी वरिष्ठ साहित्यकार डा.रमाकांत सोनी रचित पुस्तक "हाना-जिनगी के गाना" 1130 हाना ( लोकोक्तियों ) का एक अनुपम संग्रह है । लोक जीवन से जुड़े विविध अवसरों पर चाहे कोई त्योहार उत्सव हो ,या फिर बधाई आदि का संदेश देना हो सहज सरल शब्दों मे अपने भावों को प्रगट करने की कला ही वास्तव मे "हाना -जिनगी के गाना" है । अक्षर साहित्य परिषद चांपा के संस्थापक अध्यक्ष डा.रमाकांत सोनी ने जिस लगन और परिश्रम से छत्तीसगढ़ी भाषा मे हाना के हिन्दी अर्थ एवं भावार्थ को अपनी किताब मे संग्रहित करते हुए प्रकाशित किया है वह सुधी पाठकों के बीच एक धरोहर बन कर रहेगी ।
"हाना-जिनगी के गाना" को पढ़कर छत्तीसगढ़ के अनेक साहित्यकारों ने सराहना करते हुए किताब के संबंध मे अपने महत् विचार प्रगट किये हैं। इनमे से ही एक एक नाम है श्रीमती गीता शर्मा । शिव पुराण, ईशादि उपनिषद, मनुस्मृति, पंचतंत्र जैसे महाग्रंथों को छत्तीसगढ़ी भाषा में अनुवाद करने वाली रायपुर निवासी श्रीमती गीता शर्मा ने "हाना -जिनगी के गाना" पर लघु समीक्षा के रुप मे अपना विचार प्रेषित किया है । जिसे हम यहां ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं.......अनंत थवाईत संपादक संवाद यात्रा बेब न्यूज पोर्टल ।
डा.सोनी से पुस्तक प्राप्त करते हुए श्रीमती गीता शर्मासूर्य जिस प्रकार से प्रकाश का स्त्रोत है,उसी प्रकार से लोक साहित्य अथाह ज्ञान का स्त्रोत | विषय मूल्य को स्थापित करने वाली कर्म मन के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश भरते हैं । जिसतरह से वेदों ,उपनिषदों में अध्यात्म ज्ञान के गहरे रहस्यों से भरे तत्व से परिपूर्ण है, उसी तरह लोक साहित्य अनेक अर्थों में अपना गहरा रहस्य ,लोक जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं और विधाओं के द्वारा एक विलुप्त तत्व को जीवंत करता है |
कृति सृजन की पीडा़ वही समझता है जो उस दौर से गुजरता है | हाना लोक जीवन का एक गीत है जो संग संग चलता है | प्रत्येक हाना जीवन के मूल्यों को तभी प्रदर्शित करता है जब आप अनुभव रुपी सागर में डूब जातें हैं | सागर के भीतर समाहित उन ज्ञान रुपी मोती को ग्रहण कर लोगों के लिए ग्राह्य बनातें हैं । हाना जिदंगी का गाना एक तप है जो तपकर एक कुदंन सदृश्य ज्ञान का विकिरण है |
10 वर्षो का तप कर आदरणीय डा रमाकांत सोनी जी द्वारा एक असाध्य प्रयास अनवरत किया किया गया | श्रम अब साध्य और साधना स्वरुप सृजन के साथ हाना - जिनगी के गाना के रुप में अवतरित हो गया है | 1130 हाना का वृहद संकलन निश्चित रुप से मातृ भाषा के प्रति अपने करतव्य का निष्पादन और अति लगाव का एक वृहद निष्पादन किस चरम में है ,स्पष्ट रुप से प्रदर्शित है । छत्तीसगढ राज्य , छत्तीसगढी राज भाषा के प्रति उनका यह साउद्देश्य अवदान कृति के साथ लेखक के संग्रहण को और विशिष्टता के साथ सर्वोच्च शिखर पर विराजमान हो चुका है, सृजन और यह गौरव छत्तीसगढ के आकाश में चहुं ओर देतित्यमान हो| मेरी शुभकामनाएं ..
श्रीमती गीता शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ़









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